हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमुली ने मस्जिद-ए-आज़म क़ुम में अपने दरस ए अख़लाक़ के दौरान कहा,अधिकतर लोग जो हौज़ा-ए-इल्मिया और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं सत्य के मार्ग पर चल रहे हैं।
लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जो केवल अपनी पहचान बनाने या समाचारों में सुर्खियां बटोरने की इच्छा रखते हैं। ऐसे लोग न तो दूसरों की मदद कर पाते हैं और न ही अपने खुद के समस्याओं को हल करने में सफल हो पाते हैं।
उन्होंने क़ुरआन की आयत,
لَمَسْجِدٌ أُسِّسَ عَلَی التَّقْوَیٰ مِنْ أَوَّلِ یَوْمٍ أَحَقُّ أَنْ تَقُومَ فِیهِ ۚ فِیهِ رِجَالٌ یُحِبُّونَ أَنْ یَتَطَهَّرُوا ۚ وَاللَّهُ یُحِبُّ الْمُطَّهِّرِینَ"
(सूरह तौबा, आयत 108) के विभिन्न पहलुओं को समझाते हुए कहा,रसूल-ए-अकरम स.ल.व. अभी मदीना में दाखिल नहीं हुए थे कि उन्होंने मस्जिद-ए-क़ुबा की बुनियाद रखी थी।
आयतुल्लाह जवादी आमुली ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के खुत्बों का ज़िक्र करते हुए कहा, आप अलैहिस्सलाम मस्जिद में इतने लंबे और गहरे खुत्बे दिया करते थे कि इंसानी अक्ल हैरत में पड़ जाती थी।
हालांकि क़ुरआन करीम अल्लाह का कलाम है और इसका कोई सानी नहीं लेकिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम के खुत्बे क़ुरआन की व्याख्या और तफसीर के समान हैं जो इल्म और हिकमत की उच्चतम मिसाल हैं।